Sakat Chauth Vrat Katha: नए रूप में, नई भावनाओं के साथ इस अनोखे व्रत की कहानी!

Kamaljeet Singh

Sakat Chauth Vrat Katha: आज हम सभी मिलकर जानेंगे एक विशेष व्रत कथा के बारे में, जिसे हम सकट चौथ या संकष्टी चौथ कहते हैं। यह व्रत भगवान गणेश की पूजा के लिए विशेष रूप से मनाया जाता है।

कहा जाता है कि इस दिन महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना करती हैं। सुबह से ही व्रत की तैयारी शुरू होती है, और महिलाएं निर्जला व्रत भी रखती हैं, जिसमें बिना पानी पिए रहना होता है। इस विशेष दिन की शुरुआत व्रत कथा से होती है, जो महिलाओं द्वारा भगवान गणेश की पूजा के दौरान सुनी जाती है। यह कथा बताती है कि कैसे गणेश जी की कृपा से संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है और व्रत करने वालों को आशीर्वाद मिलता है। इस दिन को विशेष बनाने वाली यह कथा हमें यह सिखाती है कि समर्पण और श्रद्धा से भगवान की प्राप्ति होती है। इसलिए, इस सभी को एक साथ मिलकर इस पावन दिन को धार्मिक भावना के साथ मनाना चाहिए।

Sakat Chauth Vrat Katha: पहली व्रत कथा

एक समय की बात है, माता पार्वती और भगवान शिव नदी किनारे बैठे थे। माता ने खेलने का मन बनाया, लेकिन उनके अलावा कोई और नहीं था जो उनके साथ खेल सकता था।

तभी उन्होंने मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जीवन फूंक दी। फिर उन्होंने उस मूर्ति को निर्णायक बनाया। माता पार्वती ने खेल शुरू किया और कई बार जीत भी हासिल की। लेकिन एक बार एक बच्चा गलती से माता पार्वती को हारा दिखा दिया। इस पर माता जी नाराज हो गईं। उनका क्रोध बढ़ा, लेकिन वे बच्चे की भलाइयों को समझती थीं। इस प्रकार, उन्होंने सीख दिखाई कि हार-जीत से बड़ा होता है सच्चा और समर्पित मानवता में योगदान करना। उनका क्रोध शांत हुआ और वे बच्चे को आशीर्वाद देकर उसे समझा गए। इससे सबने मिलकर खेल का आनंद लिया और एक सबक सीखा कि हमेशा दूसरों का समर्थन करना और सहायता करना ही असली जीत है।

पार्वती देवी ने अपने क्रोध के कारण एक बालक को लंगड़ा बना दिया। बालक ने माता से माफी मांगी, लेकिन श्राप को वापस नहीं लिया जा सकता था। माता ने एक उपाय बताया – संकष्टी के दिन कन्याएं आकर पूजा करें, इससे उनके संकटों का समाधान हो सकता है। बालक ने माता पार्वती की सीख पर चलते हुए उसी दिन एक विशेष पूजा की। उसने संकटी के समय कन्याओं से व्रत और पूजा की विधि सीखी और उसे अपनाया। व्रत के दिन, बालक ने भगवान गणेश की पूजा करते हुए अपनी मनोकामनाएं मांगीं और माता पार्वती से संकटों के निवारण के लिए प्रार्थना की। उनकी ईमानदार पूजा ने भगवान को प्रसन्न किया और उन्होंने बालक के संकटों को दूर कर दिया।

इसके बाद, बालक ने माता पार्वती को कृतज्ञता से धन्यवाद दिया और उसने इस अनुभव से सीखा कि ईश्वर की पूजा और विश्वास से ही सभी संकटों का समाधान हो सकता है।

Sakat Chauth Vrat Katha

Sakat Chauth Vrat Katha: दूसरी व्रत कथा

एक समय की बात है, राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार अपने हलवे के बर्तन बनाता था। लेकिन उसकी मिट्टी के बर्तन कच्चे ही रह जाते थे। एक दिन, उसने एक पुजारी से सुना कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी विघ्न दूर होते हैं। कुम्हार ने इस सुनहरे अवसर का उपयोग करते हुए अपने बर्तनों को सही बनाने के लिए एक छोटे बच्चे को आंवा में डाल दिया। उस दिन संकष्टी चतुर्थी का व्रत था।

उस दिन कुम्हार के बेटे की मां बहुत चिंतित थी। उसने गणेश जी से अपने बेटे के भविष्य की कुशलता के लिए प्रार्थना की। अगले दिन, जब कुम्हार ने आंवा खोला, तो देखा कि उसके बर्तन पूरी तरह से तैयार थे, लेकिन उस बच्चे के बाल बांका नहीं हुआ था। कुम्हार ने इस अजीब घटना को देखकर घबरा गया और राजा के सामने यह सब बताया। इसके बाद राजा ने उस छोटे बच्चे और उसकी मां को बुलवाया और मां ने संकष्टी चतुर्थी का महत्वपूर्ण व्रत बताया। इसके बाद से, सभी महिलाएं संतान सुख और परिवार के सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगीं।

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