“Premanand Ji Maharaj: डूबे दुख की गहराई में, कैसे परिजन निकले बाहर? 6 साल के बच्चे के गम से भरी कहानी”

Kamaljeet Singh

Premanand Ji Maharaj Video: प्रेमानंद महाराज ने हमेशा ही लोगों के दिलों को छू जाने वाले विचारों से भरा होता है। उनके प्रवचनों से लोगों को नये जीवन की राह दिखाई जाती है। हाल ही में एक सत्संग में उन्होंने एक 6 साल के बच्चे के दर्दभरे किस्से का साझा किया।

वह बच्चा गुम हो गया था, और उसके माता-पिता उसे ढूंढ़ने के लिए अत्यंत परेशान थे। प्रेमानंद महाराज ने बताया कि किसी भी माता-पिता के लिए उसके बच्चे का गुम हो जाना सबसे बड़ा दुःख होता है।

उन्होंने समझाया कि जीवन में हमेशा ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जो हमें दुःख में डाल सकती हैं, लेकिन हमें कभी निराश नहीं होना चाहिए। उन्होंने बताया कि संगठन और सामर्थ्य के साथ, हम किसी भी मुश्किल से निकल सकते हैं। उन्होंने समझाया कि गुम होने के बावजूद हमें आगे बढ़ना है, और दूसरों की मदद करना हमें साहस और सहानुभूति का अभ्यास करता है।

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प्रेमानंद महाराज ने उस बच्चे के माता-पिता को उत्तेजित किया कि वे उसे ढूंढ़ने के लिए प्रयासरत रहें, और उन्हें आशा दिया कि उन्हें अपनी मेहनत का फल जरूर मिलेगा। उन्होंने यह भी समझाया कि जीवन में हमें हमेशा सकारात्मक दिशा में सोचना चाहिए, और हर दुःख के पीछे खुशियों की किरणें भी होती हैं।

प्रेमानंद जी का एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा में है। उनके इस वीडियो में एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि हमारा छोटा बेटा, जो कि माता-पिता के साथ नहीं रहता है, यह क्या परीक्षा है – क्या यह हमारे कर्मों का फल है? प्रेमानंद जी ने बड़े ही प्रेम और समझदारी से जवाब दिया।

“बच्चे हमारे जीवन के सबसे बड़े चमत्कार होते हैं। उनके हमारे जीवन में आना और जाना हमें सिखाया जाता है, हमें प्रेम की सच्चाई सिखाई जाती है। विचारधारा की कोई अवधारणा नहीं है कि वे हमारे पास क्यों नहीं रहे, परन्तु यह एक परीक्षा नहीं होती। यह उनके स्वभाव और उनके अपने समय का हिस्सा हो सकता है। हमें उन्हें प्यार और समर्थन देना चाहिए, उन्हें समय और स्थान देना चाहिए, ताकि वे अपना विकास कर सकें। और कर्मों का फल होने की बात है, तो हमें सदैव अच्छे कर्म करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे हमारा परिवार सदैव खुश और समृद्ध रहे।”

इस उत्तर से प्रेमानंद जी ने सभी को संतुष्ट किया और उन्होंने परिवार और प्रेम के महत्व को समझाया। वे हमेशा प्रेरणा देने के लिए जाने जाते हैं।

Premanand Ji Maharaj: मानव शरीर का समय पहले से ही निर्धारित

प्रेमानंद जी महाराज ने यह कहा कि हर जीव को समय-समय पर इस धरती पर भेजा जाता है, और हमारे कर्म हमें उस जीव से जुड़ते हैं। जो चला गया है, उसका परिवार हमेशा उसके साथ बटोरता है। अब वह चला गया है, इसलिए हमें उसकी यादें और उसका अभाव महसूस होता है।

उसने हमें लालच में और मोह में फंसाया, हमें उसकी आशाओं में समाने की जगह, जीवन की असलियत में सामंजस्य बनाने की जरूरत है। हमें चाहिए कि हम उसके प्रेरणा को समझें, उसकी गलतियों से सीखें, और उसके साथ किये गए पलों को समर्पित करें। हमें वह बातें सीखनी चाहिए जो हमें उसकी यादों में जीवित रखेंगी।

अब उसने हमें धरती पर अपनी अनुपम कहानी छोड़ दी है, हमें उसके प्रेरणा और संदेश को समझना और अपने जीवन में उसके अद्भुत अनुभवों से प्रेरित होना चाहिए। उसकी यादों को धारण करके हमें उसके प्रेम और उसके संदेश का पालन करना चाहिए, ताकि हमें उसका आशीर्वाद मिले और हम उसके पास हमेशा उपस्थित महसूस करें।

 

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Premanand Ji Maharaj: सब कर्मों का ही फल है

प्रेमानंद जी कहते हैं कि हम सभी कर्मों के फल का अनुभव कर रहे हैं, जो कि भोग है। इस संसार में जन्म से ही मरण तक, हम सभी इस कर्म के चक्कर में हैं। कुछ लोग जन्म से ही इसी चक्कर में फंसे रहते हैं, कुछ तो कुछ विपरीत चरित्र के कारण जल्दी ही इस चक्कर से बाहर निकल जाते हैं। कुछ युवावस्था में ही इस चक्कर में फंस जाते हैं, और कुछ बड़े होकर भी इसी कर्म के बंधन में बाँधे रहते हैं।

प्रेमानंद जी कहते हैं कि यह जीवन एक अनगिनत सिक्के की तरह है, जिसे हम कर्मों के रूप में खरीदते हैं। इस भोग-भाग के चक्कर में हम बहुत कुछ अनुभवते हैं – सुख, दुःख, प्रेम, और विरह। परंतु सच्चा आनंद तभी होता है जब हम इस सिक्के को छोड़कर अध्यात्म की ओर बढ़ते हैं।

माँ के गर्भ से लेकर परिपक्वता तक, हर जीव का सफर है अनुभवों का खजाना। परंतु इस भौतिक संसार में, हमें ध्यान देना चाहिए कि हम किस दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। क्या हम दुख की बारिश में बह रहे हैं, या फिर आनंद के अमृत को पी रहे हैं?

प्रेमानंद जी कहते हैं कि अध्यात्म ही वह आरामदायक चादर है, जो हमें संसारिक दुख से मुक्ति दिलाती है। यहाँ तक कि जब हम परिपक्वता की चोटी पर होते हैं, तो भी अध्यात्म हमें उस ऊँचाई पर ले जाता है जहाँ से हमें सच्चा सुख मिलता है।

इसलिए, हमें समय-समय पर अपने कर्मों का अनुभव करने के साथ-साथ अपने आत्मा के साथ भी जुड़ना चाहिए। यही सच्चा जीवन का रहस्य है, जो हमें आनंद और शांति का अनुभव कराता है।

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