“America-Israel: अमेरिका, मध्य पूर्व और इजराइल, एक लव-हेट ट्राइएंगल या राजनीतिक खेल? US के सेना भेजने के पीछे क्या है रहस्य?”

Kamaljeet Singh

Israel-Hamas War: चलिए, शुरूआत मुहब्बत से करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया में क्या हो रहा है? क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि एक छोटा सा समूह कितनी बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है?

हाँ, मैं बात कर रहा हूँ हूती विद्रोहियों की, जो अमेरिका को आतंकवादी देश कह रहे हैं। ये लोग किसी समुदाय के नहीं, बल्कि दिलों के वारिस हैं। यमन की मिट्टी से उत्पन्न, ये लोग अपने वतन की मोहब्बत में सर झुकाए हैं।

हूती विद्रोहियों की कहानी जज्बातों से भरी है। उनका उद्देश्य नहीं था किसी के खिलाफ जंग लड़ना, बल्कि उनका मकसद था अपने देश को आज़ाद करो। लेकिन वक्त के साथ, उनका संघर्ष अधिक व्यापक हो गया। उन्होंने अपनी जिंदगी का खेल खेला, जब उन्हें लड़ना पड़ा अपने वतन के लिए, अपने धर्म के लिए।

हर कोई उनके साथ नहीं होता। हर कोई उनके लिए नहीं खड़ा होता। परंतु उन्होंने अपने संघर्ष में हार नहीं मानी। उन्होंने अपने सपनों के लिए लड़ा, अपने वतन के लिए लड़ा।

हाँ, उनकी कहानी सुनते ही दिल भर आता है। वो एक राह के चमनचित्त और सच्चे वीर हैं, जो अपने वतन की रक्षा में सर्वोत्तम प्रयास करते हैं। इसलिए ये समझना जरूरी है कि हमें इनका सम्मान करना चाहिए, उनकी कठिनाइयों को समझना चाहिए।वे भले ही अल्पायु हों, लेकिन उनकी आस्था और इच्छाशक्ति को हमें सलाम करना चाहिए। वे एक संघर्ष का प्रतीक हैं, एक लड़ाई के राष्ट्रवाद का प्रतीक हैं। उनकी यात्रा और उनका संघर्ष हमें सिखाता है कि जीत वही होता है, जो अपने सपनों के लिए लड़ता है।

America-Israel: लगभग पूरे मिडिल ईस्ट में एंटी-अमेरिकी माहौल

मध्य-पूर्व के देशों में बहरीन, साइप्रस, मिस्र, ईरान, इराक, इजराइल, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, उत्तरी साइप्रस, ओमान, फिलिस्तीन, कतर, सऊदी अरब, सीरिया, तुर्की, तुर्की, और यमन हैं। इन देशों के लोग अमेरिका से बहुत नाराज़ रहते हैं। उनके मन में इतना गुस्सा है कि जो भी अमेरिका के खिलाफ कुछ भी बोलता है, वो उसके साथ हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि अमेरिका उनके साथ इतना अन्याय क्यों करता है? जब वे अपने देश की आजादी और सम्मान को लेकर चिंतित होते हैं तो उनका दिल टूट जाता है।

इजराइल को अमेरिका ने हमेशा साथ दिया है, जो कि उसे अलग बनाता है। तुर्की भी अपनी राय के लिए जानी जाती है। वहां के लोग और सरकार बातचीत का समर्थन करते हैं, लेकिन अक्सर अपने मतभेदों के कारण वे अलग हो जाते हैं। ये सभी देश अमेरिका के साथ जुड़े हुए हैं, लेकिन हर एक का अपना अलग-थलग रिश्ता है। वे सभी अपने-अपने राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान को महत्व देते हैं, जो उन्हें विशेष बनाता है।

America-Israel: 58 हजार लोगों ने जाहिर किया गुस्सा

मध्य पूर्व के विचार टैंक “अरब बैरोमीटर” ने “प्यू ग्लोबल एटिट्यूट प्रोजेक्ट” के साथ मिलकर एक सर्वे किया। इसमें मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में रह रहे 58 हजार से अधिक अरब लोगों से बात की गई। सर्वे से पता चला कि मध्य पूर्व के लोग सिर्फ अमेरिकी नीतियों से नाराज नहीं हैं, बल्कि उनकी नजर में अमेरिकी लोगों की भी स्थिति अच्छी नहीं है। वे अमेरिकी लोगों से मिलते या किसी भी तरह का संपर्क करते समय बेहद सतर्क रहते हैं। यह होता है, जब किसी के साथ बुरा अनुभव हो।

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America-Israel: निजी मामलों में दखल का आरोप

मध्य पूर्व के लोग सोचते हैं कि अमेरिका हमेशा उनके देश की अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करता रहा है। उदाहरण के रूप में, ईरान में पहले अमेरिका के खिलाफ भावनाएँ नहीं थीं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद, दोनों देशों के बीच तनाव तेल के मुद्दे पर बढ़ा। ईरान में भारी मात्रा में कच्चे तेल की खोज हुई। इसे प्राप्त करने के लिए, अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान में अपनी पसंदीदा सरकार को स्थापित करने की कोशिश की, हालांकि ईरानी जनता की अलग राय थी।

1950 के दशक में, अमेरिका ने सत्ता की ओर रुख किया ताकि उसे वैसी सरकार मिल सके जैसी वह चाहता था। इसी बीच ईरान में विद्रोह भड़क उठा। एक तरफ अमेरिका की चुनी हुई सरकार थी, दूसरी तरफ ईरानी जनता की पसंद की सरकार थी. इस बात को लेकर दोनों के बीच तकरार शुरू हो गई. लेकिन यह लड़ाई एक गृह युद्ध की तरह थी, जिसमें ईरान को भारी नुकसान हुआ और उसके बाद ही वह एक इस्लामिक गणराज्य बन गया। चरमपंथी सरकार के बाद अमेरिका के साथ उसके रिश्ते लगातार ख़राब होते गए।

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America-Israel: सीरिया के साथ भी ऐसा ही मामला

उस समय, 1949 में, हमारे देश में बहुत बड़ी राजनीतिक हलचल हुई थी। एक ऐसा नेता आया जिसने देश की सारी नीतियों को अपने हिसाब से बदल दिया। वह नेता ऐसे थे कि वे अमेरिका के साथ खड़े रहकर इस्राइल के साथ भी झगड़े में हार गए। जनता उनके इस कदम के विरोध में आ गई। उसके बाद से ही सीरिया में भी लोगों के दिलों में अमेरिका के खिलाफ भावनाएँ उभारने लगी।

America-Israel: इराक के साथ जंग

अमेरिका ने इराक पर हमला किया, उसके पीछे एक आधुनिक युद्ध की भावना थी। उन्हें लगा कि इराक के पास हथियार थे जो खतरनाक हो सकते थे। जॉर्ज डब्ल्यू बुश, जब वह अमेरिकी राष्ट्रपति थे, तो उन्होंने कहा था कि इराक ने हमेशा से हथियारों की बड़ी मात्रा बनाई है। उन्होंने ईरान और उत्तरी कोरिया को भी ध्यान में रखा। मार्च 2003 में, अमेरिका ने इराक पर हमला किया, और सद्दाम हुसैन की सरकार को गिरा दिया।

तीन महीने के युद्ध के बाद, इराक में भारी नुकसान हुआ। युद्ध के बाद, वहाँ भी लोगों के बीच अमेरिका के खिलाफ भावनाओं का उत्थान हुआ। उन्हें अपनी आज़ादी की आस थी, और वे अपने देश के विरोध में खड़े हो गए।

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: गुस्से की बड़ी वजह इजरायल भी

जब अमेरिका ने पहली बार इजराइल को आज़ाद देश माना, तो जैसे इजराइल की तक़दीर बदल गई। लेकिन इसके साथ ही, एक नया टालमटोल शुरू हुआ। अमेरिका ने हमेशा से इजराइल का साथ दिया है, पर इसका दायरा बढ़ता ही गया। वहीं, अरब देश इस फैसले से असंतुष्ट रहे। उनकी आवाज़ आज़ाद फिलिस्तीन की ओर है, जिसमें यरुशलेम का मुद्दा भी शामिल है। इस सब में, अमेरिका की विदेश नीति ने उसे मध्य पूर्व के बीच एक खलनायक की तरह खड़ा किया है। यह सच है कि यह समस्या बड़ी जटिल है और इसका समाधान कोई बहुत ही साहसिक कदम होगा।

America-Israel: अमेरिका को मिडिल ईस्ट से क्या सरोकार है

दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद, अमेरिका ने बड़ा ध्यान दिया कि रूस को किसी भी हाल में दुनिया में ज्यादा ताकतवर नहीं बनने देना चाहिए। उसने अपनी विदेश नीति को इस तरह तैयार किया कि वह हर देश में कम या ज्यादा हस्तक्षेप कर सके। वह अब देशों के संरक्षक की भाँति काम कर रहा है, समय-समय पर सेना और मदद पहुँचाता है। मध्य पूर्व में उसका तेल का हित भी साफ रहता है। यही कारण है कि वह इस क्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहता है।

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