Supreme Court:
2016 में अदालत में, वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें तेजी से आपराधिक मुकदमों को मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ चलाने के लिए उपयुक्त निर्देश देने की मांग की गई थी।
Supreme Court: मामलों के शीघ्र निपटाने के लिए आदेश जारी कर सकते हैं
भारतीय न्यायपालिका अपने आप को नए संभावनाओं के साथ परिभाषित कर रही है। यह सही है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ मुकदमों के लिए एक निर्दिष्ट समयसीमा की गई बात किसी ने नहीं की है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा है कि हर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को इस मुद्दे पर ध्यान देना होगा। यह नई दिशा तय करने का प्रयास कर रही है, जिससे लंबित मुकदमों की प्रबंधन और निगरानी में सुधार हो सके।इस अद्वितीय पीठ ने कहा कि जब विशेष परिस्थितियों में महसूस होता है कि किसी मामले का नियमित अंतराल पर सूचीबद्ध करना आवश्यक है, तो उसे किया जा सकता है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश नरसिम्हा और मिश्रा, जिनमें एचसी के मुख्य न्यायाधीशों का भी समाहित हो सकता है, मामलों के शीघ्र और प्रभावी निपटाने के लिए आदेश और निर्देश जारी कर सकते हैं। इस पीठ का नेतृत्व एचसी के मुख्य न्यायाधीशों द्वारा भी किया जा सकता है, जिनके नाम पीएस नरसिम्हा और मनोज मिश्रा हैं।
Supreme Court: पांच साल से अधिक जेल की सजा वाले मामलों को पहले प्राथमिकता देनी चाहिए
ऐसा कह सकते हैं कि मौत की सजा या आजीवन कारावास के बाद, पांच साल से अधिक की जेल की सजा वाले मामलों को पहले प्राथमिकता देनी चाहिए।अदालत ने कहा है कि उच्च न्यायालय वहां भी मामले सूचीबद्ध करेगा, जहां मुकदमों पर रोक लगी है, और इस तरह के मामलों में तेजी से कार्रवाई के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे।स्वतंत्र टैब बनाने का उद्देश्य यह है कि लोग आसानी से उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उनके मामलों की जानकारी प्राप्त कर सकें। इस टैब में न्यायिक प्रक्रिया के निर्देश, मामले की स्थिति, और अन्य महत्वपूर्ण विवरण होंगे। यह सुनिश्चित करेगा कि लोगों को अपने मामले की प्रगति को समझने में कोई कठिनाई नहीं होती, और वे सरकारी प्रक्रिया के साथ संतुष्ट रह सकें
Supreme Court: तेजी से आपराधिक मुकदमों की सुनवाई
2016 में, वकील अश्विनी उपाध्याय ने एक याचिका दाखिल की थी, जिसकी सुनवाई अदालत में चल रही थी। इस याचिका में, संसद और विधानसभाओं के मौजूदा और पूर्व सदस्यों के खिलाफ तेजी से आपराधिक मुकदमों की सुनवाई के लिए उपयुक्त निर्देश देने की मांग की गई थी।उपाध्याय की याचिका में वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने सितंबर में अपनी रिपोर्ट में उच्च न्यायालय में न्याय मित्र के रूप में सेवा कर रहे होते हुए देश के विभिन्न निचली अदालतों में लंबित 5,175 मुकदमों के शीघ्र निपटान की मांग की है। जिन 2116 मामलों में से लगभग 40% यानी बड़े हिस्से के मामले, उन्हें पांच साल से अधिक समय से लंबित बताया गया था। इस अंश में सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश से रिपोर्ट हुए थे, जिनकी संख्या 1,377 थी। उसके बाद, बिहार (546) और महाराष्ट्र (482) आते हैं।
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Supreme Court: चिंताए होंगी तेजी से हल
यह प्रक्रिया एक न्यायिक सिफारिश के रूप में शुरू हो, जिसमें न्याय मित्र द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को अदालत को सौंपा जाता है। इसके बाद, अदालत उस रिपोर्ट के आधार पर सरकार से एक या अधिक चिंताओं पर प्रतिक्रिया कर सकती है। यह नया तरीका न्यायिक प्रक्रिया को सुधारने का प्रयास हो सकता है, जिससे चिंताएं तेजी से हल हो सकती हैं।अदालत रिपोर्ट को पूर्णता या आंशिकता से स्वीकृति देने या प्रस्तावित सुझावों में परिवर्तन की मांग करने पर विचार करते समय, अपने विवेक का सही उपयोग करना होता है।
Supreme Court: उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को स्पष्टीकरण देना होगा
2014 में एक निर्णय में, उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि निर्वाचित सांसदों के खिलाफ लगाए गए आरोपों के मुकदमे को एक साल के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।आरोपपत्र सबमिट होने के बाद, अदालत सुनवाई करती है और अभियोजन पक्ष और अभियुक्त की बातचीत के बाद, यह निर्णय करती है कि कौन-कौन से बिंदुएं उस मुकदमे में विचारित की जाएंगी।2014 के फैसले में, शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि यदि किसी आरोप का समाधान एक साल के अंदर नहीं होता, तो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को स्पष्टीकरण देना होगा। इस प्रकार के मामलों में, दिन-प्रतिदिन सुनवाई का आदेश जारी करना होगा।