Randeep Hooda: स्वतंत्रता वीर सावरकर (Swatantrya Veer Savarkar) की कहानी को जानने की इच्छा आज भी हर भारतीय के दिल में होती है। वे एक ऐसे सेनानी थे जिनका बलिदान और समर्पण हमें आज़ादी के सपने को साकार करने में मदद करा। लेकिन आजकल के फिल्मों में, जो स्वतंत्रता संग्राम के हीरोज को दिखाया जाता है, उनमें सावरकर की कहानी अक्सर छूट जाती है।
रणदीप हुड्डा (Randeep Hooda) के माध्यम से जो फिल्म बनाई गई है, वह वीर सावरकर के जीवन को एक नए आयाम में पेश करती है। लेकिन यह कहना सही होगा कि यह फिल्म उन बेहतरीन का स्तर नहीं है, जिसे हमने ‘रंग दे बसंती’, ‘लगान’, या ‘गांधी’ जैसी फिल्मों में देखा है।
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वीर सावरकर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने जीवन का हर पल समर्पित किया। उनके योगदान को समझने की जरूरत है और हमें उनके बारे में अधिक से अधिक जानकारी होनी चाहिए। इस फिल्म के माध्यम से हमें उनकी कहानी को समझने का मौका मिलता है, लेकिन इसमें उन्हें समर्पित की गई उनकी सच्चाई और उनके योगदान को पूरी तरह से नहीं प्रस्तुत किया गया है।
इसलिए, हमें अपने इतिहास को सही और पूरा रूप से समझने की जरूरत है, और स्वतंत्रता संग्राम के सभी वीर सेनानियों को सम्मान और श्रद्धांजलि देनी चाहिए। उनके बलिदान को भूलना नहीं चाहिए, और उनकी कहानी को नए पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहिए।
Randeep Hooda: कहानी
विनायक दामोदर सावरकर की यह कहानी है, एक साहसी और उत्साही योद्धा की, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए संघर्ष करते रहे। सावरकर जी को जन्म होते ही एक अद्भुत भारतीय स्वतंत्रता के सपने थे। उनका सपना था एक ऐसे भारत का निर्माण, जो स्वतंत्र, समृद्ध और समाज में समानता की भावना से ओत-प्रोत हो।
सावरकर जी की कहानी उनकी मेहनत, संघर्ष और विश्वास की कहानी है। उन्होंने अपने जीवन को स्वाधीनता के लिए समर्पित कर दिया। वे अपने विचारों के प्रति प्रतिबद्ध थे और कभी भी अपनी प्राणों का बदला नहीं लेने के लिए तैयार थे।
सावरकर जी का संघर्ष आत्मा की उत्साह और संगीन भरे दिल की कहानी है। उनका सपना था भारत में स्वाधीनता और समृद्धि का उत्थान। उन्होंने अपनी अद्भुत विचारधारा के माध्यम से लोगों को जागरूक किया और उन्हें विश्वास दिलाया कि वे भी अपने देश के लिए कुछ कर सकते हैं।
सावरकर जी की कहानी एक प्रेरणादायक संघर्ष की कहानी है, जो हमें यह सिखाती है कि सपनों को पूरा करने के लिए हमें मेहनत और संघर्ष की आवश्यकता होती है। उनकी कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि जब हम अपने लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध होते हैं, तो हम किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं और अपने सपनों को हकीकत में बदल सकते हैं।
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Randeep Hooda: कैसी है फिल्म
फिल्म शुरुआत से ही वीर सावरकर की कहानी को दर्शाती है, उनके परिवार को, और उनके बड़े भाई गणेश के प्रभाव को भी जो शुरुआत में अच्छा लगता है, लेकिन फिर धीरे-धीरे हर सीन सिर्फ सावरकर पर ही फोकस करने लगता है। फिल्म को डार्क सेटिंग में शूट किया गया है जो किसी टाइम के बाद दर्शकों को परेशान भी कर सकता है। हम सभी इतिहास पढ़ते हैं, इसलिए हम सभी स्वतंत्रता सेनानियों को पहचान पाते हैं, लेकिन फिल्म में किसी के नाम लिखे नहीं होने से कुछ लोगों को डिलीमा हो सकता है कि ये कौन सा करेक्टर हो सकता है। फिल्म 3 घंटे लंबी है और कई सीन काफी लंबे हैं, जिनकी जरुरत नहीं थी। जेल से लिखे गए जाने वाले सावरकर की पिटीशन और जेल में होने वाले अत्याचारों को दिखाने की जरुरत थी, लेकिन कुछ सीन बहुत खींचे गए थे। फिल्म में Randeep Hooda ने जेल के सीन्स में शानदार काम किया है। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और सुभाष चंद्र बोस का नाम तो आया, लेकिन उनके करेक्टर पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, जो कुछ लोगों को अजीब लग सकता है। फिल्म को प्रोपेगैंडा कहा गया था और फिल्म में महात्मा गांधी को डार्क शेड में दिखाया गया है, जो कुछ लोगों को सोचने पर मजबूर कर सकता है। फिल्म में वीर सावरकर और महात्मा गांधी के बीच के मतभेद वाले सीन काफी दिलचस्प हैं। फिल्म बीच में कुछ बोरिंग हो सकती है, जहाँ जेल के सीन्स को बहुत खींचा गया है। फिल्म को आसानी से 2 घंटे में खत्म किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, इंटरवल का इंतज़ार करते हुए दर्शक बोर हो जाते हैं।
Randeep Hooda: एक्टिंग
Randeep Hooda ने वीर सावरकर का किरदार निभाया है और उनका इसमें ट्रांसफॉर्मेशन देखकर हर कोई हैरान हो जाएगा। उनकी एक्टिंग ने हमें बिलकुल ही चौंका दिया है। वह कई बार इतने अद्भुत रूप से किरदार में बस जाते हैं कि हमें समझ में नहीं आता कि ये हमारे पहले से कितने जाने-माने रणदीप हुड्डा हैं।
उनके प्रत्येक सीन में उनकी एक्टिंग ने हमें भावनाओं का समुंदर समझाया है। कई सीन ऐसे हैं जिनमें हमें रोने का मन करता है, और कई सीन हैं जिनमें हम खुशी से हंसते हैं।
इस फिल्म में अमित सिआल ने सावरकर के बड़े भाई का किरदार निभाया है, और वह भी बहुत जाने-माने हस्तियों के साथ एक अलग ही प्रकार का उत्तम काम किया है। मदन लाल का किरदार भी अलग छाप छोड़ जाता है, और मृणाल दत्त का भी यही हाल है।
अंकिता लोखंडे ने यमुना बाई का किरदार निभाया है और उनकी एक्टिंग में एक अलग ही जादू है। महात्मा गांधी बने राजेश खेरा के किरदार में भी उन्होंने कुछ अलग ही लाया है, जो हमें आश्चर्यचकित कर देता है। इस फिल्म में सभी कलाकारों ने अपना काम बहुत ही अच्छे तरीके से किया है और उनकी प्रतिभा ने हमें बिलकुल भी निराश नहीं किया है।
Randeep Hooda: डायरेक्शन
Randeep Hooda की पहली डायरेक्शन वाली फिल्म है। यह फिल्म पहले महेश मांजरेकर के निर्देशन में बन रही थी, लेकिन कुछ अंतर्भावों के कारण रणदीप ने संभाल लिया। फिल्म के कई फ्रेम शानदार हैं और सिनेमेटोग्राफी कमाल की है। हालांकि, डायरेक्शन में कुछ कमी है, जैसे कि लंबे सीन को कटौती नहीं की गई है।
एक्टिंग का दबाव रणदीप पर नहीं पड़ता है, लेकिन फिल्म में उनके किरदार पर ज्यादा ध्यान दिया गया है, जिसके चलते अन्य कलाकारों का काम कम लगता है। फिल्म में कई मोनोलॉग हैं, जहां रणदीप कैमरे को देखकर बात करते हैं, जो थोड़ी देर बाद बोर करने लगते हैं।
वीर सावरकर को वहीं पसंद करेंगे जो ऐतिहासिक व्यक्तियों में रोमांच और आवाज़ हो। जिनके जीवन पर बनी लंबी फिल्में देखना संभव हो। वर्ना फिल्म का आनंद नहीं मिलेगा।