Farmer Protest: दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन अब भी जारी है, और उनकी त्रासदी बढ़ती जा रही है। इन किसानों को अपने मांगों के लिए सरकार से मिलने की आशा थी, लेकिन अब भी उनका समर्थन नहीं मिला है। वे राजधानी दिल्ली की तरफ बढ़ रहे हैं, परंतु सुरक्षा बलों ने उन्हें रोक लिया है। हालांकि, इस रोक-टोक में किसानों और पुलिस के बीच झगड़े भी हो रहे हैं।
हरियाणा-पंजाब के सीमाओं पर, किसानों की आंदोलन ने तनाव को बढ़ा दिया है। पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े हैं, जिससे वहां का माहौल और भी बिगड़ गया है। इससे किसानों में हलचल मच गई है, और अब वहां का सितारा भी बिगड़ रहा है।
इस संघर्ष के बीच, किसानों की आस्था और उम्मीद एक टूटती हुई धारा की तरह है। उनके आँसू और दर्द को समझना बेहद मुश्किल है, लेकिन उनके संघर्ष को समर्थन देना भी हमारा कर्तव्य है। उनके साथ हमें खड़ा होकर उनकी माँगों को समझने और समर्थन में साथ देना चाहिए।
Farmer Protest: किसानों पर पुलिस का बल प्रयोग
किसानों को जो अपने भूमि की रक्षा करने के लिए हर दिन अपने जीवन की खेती करते हैं, उनके लिए आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण था। आज सुबह 11 बजे, एक संघर्ष का नया चेहरा दिल्ली के दरवाजों पर उजागर हुआ। किसानों ने अपनी मांगों को सुनाने के लिए ट्रैक्टरों की लाइन बनाई और अपने रास्ते में ही आगे बढ़ने का निर्णय लिया।
लेकिन, उनके इस प्यारे सपने को पुलिस ने बाधित करने का प्रयास किया। उन्होंने बल प्रयोग किया और किसानों के आगे बढ़ने से रोका। लेकिन किसान नहीं थमे, उनकी आवाज को दबाने का कोई इरादा नहीं था।
आज, लगभग 14 हजार किसान 12 हजार ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली के दरवाजों पर खड़े हैं। इस बार, पुलिस चाहती है कि कोई भी गड़बड़ी न हो, कोई भी दुर्घटना न हो। पिछले साल के विरोध में सीख को ध्यान में रखते हुए, पुलिस ने सुरक्षा के इंतजाम किए हैं। हर कोने में सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं और हर एक किसान की हरकत का ध्यान रखा जा रहा है।
किसानों की ये जिद है, उनका ये संघर्ष है, उनका ये जज्बा है। वे नहीं हारेंगे, वे नहीं रुकेंगे, जब तक उनकी मांगों पर पूरा ध्यान नहीं दिया जाता।
Farmer Protest: पोकलेन-जेसीबी मशीन मालिकों को पुलिस की चेतावनी
किसान बॉर्डर पर पोकलेन और जेसीबी जैसी बड़ी मशीनें लेकर पहुंचे हैं। यह मशीनें नहीं सिर्फ इस्तेमाल की जा रही हैं, बल्कि इनका एक और महत्वपूर्ण काम है। ये मशीनें हमारे किसानों का साथ देने, उनकी आवाज को सुनने और उनकी मुश्किलों को समझने के लिए यहां हैं।
लेकिन हरियाणा पुलिस ने बुधवार को इन मशीनों के मालिकों को समझाया है कि वे प्रदर्शन स्थल से अपनी मशीनें हटा लें। अगर ये मशीनें यहां रहीं तो यह किसानों के साथी को नुकसान पहुंचा सकती है। किसानों के लिए ये मशीनें उनकी आवाज को बुलंद करने का जरिया है, और हमें उनका साथ देना है।
इस समय, हमें अपने किसानों के साथ होना चाहिए, उनके साथ खड़े होना चाहिए। हमारे किसान हमारी शान हैं, हमें उनकी मदद करनी चाहिए, उनकी सुननी चाहिए। यह एक समय है जब हमें एकजुट होकर अपने किसानों के साथ खड़े होना है, उनकी मुश्किलों को समझना है और उनके साथ समर्थन में होना है।
किसान हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और हमें उनके साथ होकर खड़े होना है। उनकी मशीनों को हटाने के बजाय, हमें उनका साथ देना चाहिए और उनकी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करना चाहिए। हमारे किसान धरती के असली हीरे हैं, और हमें उनके साथ होकर उनके अधिकारों का समर्थन करना है।
दिल की गहराइयों से उठती हुई आवाज़, किसानों की आँखों में बहता हुआ आंसू, वे फिर से अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं। पंजाब और हरियाणा के बीच, उन सीमा बिंदुओं पर, जहाँ धूप में पलटी अधिकतम किसानों की मेहनत अब रोने की श्रेणी में है।
सरकार ने खुद को अन्नदाताओं के साथ खड़ा किया था, उनके अधिकारों की सुनवाई करने का वादा किया था। लेकिन जब आंदोलन के रोशनी को बुझाने का समय आया, तो उनकी आस टूट गई। उन्होंने फिर अपने फंदे को मजबूत किया, उनकी आवाज़ को फिर से गूँजा। पांच साल की उम्र दालों, मक्के और कपास की, उनकी मान्यता के समर्थन मूल्य पर खरीदने की प्रस्ताव ने न तो उनकी भूख मिटाई और न ही उनकी आस पूरी की। इससे उनका दिल टूट गया और वे फिर से खड़े होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए तैयार हो गये।
यह नहीं बस एक आंदोलन है, यह उनका आँसू, उनका प्यार, उनका संघर्ष है। वे फिर से सड़कों पर उतर आए हैं, अपने सपनों को लेकर, अपने हक की बात करने के लिए।
Farmer Protest: दिल्ली के कई रास्तों पर लंबा जाम
दिल्ली के सड़कों पर लंबे जाम ने हमें अपने घरों से अलग किया हुआ है। राजधानी में सुरक्षा के नाम पर भारी सैन्य बल तैनात किए गए हैं, लेकिन इसका हमें कोई फायदा नहीं हो रहा। दिल्ली से गुरुग्राम, बहादुरगढ़ और अन्य स्थानों की सड़कों पर जाम लगा हुआ है। हम अपने मकसद की तरफ नहीं बढ़ पा रहे हैं।
किसानों के साथ सरकारी नेताओं के बीच हुई चौथे दौर की बातचीत में तीन मंत्रियों ने अपना प्रस्ताव रखा कि पांच साल तक सरकार दालें, मक्का और कपास को खरीदेगी। हम उम्मीद कर रहे थे कि अब हमारी मुश्किलें कम होंगी, परन्तु किसान नेताओं ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। वे कहते हैं कि यह किसानों के हित में नहीं है।
हम जब तक अपने किसान भाइयों के साथ समझौता नहीं करते, हमारा जीवन अटका हुआ है। हमें अपने देश के विकास को तब तक नहीं देख पाएंगे जब तक हम एकसाथ नहीं आएंगे। इस समस्या का समाधान निर्णय नहीं, संवाद और समझौते में है।