12Th Fail Review: एक सच्ची कहानी, जो आज की फिल्मों से अलग है, संघर्ष और हौसले का जीता जागता उदाहरण।

संघर्ष और हौसले का जीता जागता उदाहरण।

Kamaljeet Singh

12Th Fail: बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री अपने नए हीरो को साउथ की फिल्मों से गढ़ने में लगी हुई है, लेकिन निर्माता-निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने यह विचार दिया कि इस जटिल प्रकार के फिल्मों के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है। हमारी फिल्मों के हीरो हमारे आसपास ही होते हैं।

उनके नवीनतम फिल्म ’12वीं फेल’ एक बायोपिक फिल्म है, जो आईपीएस अनुराग पाठक की कहानी पर आधारित है। फिल्म उनकी बेस्टसेलर किताब ’12वीं फेल’ पर आधारित है जिसमें एक लड़के ने दिल्ली आकर यूपीएससी की परीक्षा पास की और फिर पुलिस अफसर बना। फिल्म देश में शिक्षा, उसे लेकर लोगों की सोच और व्यवस्था की बात करती है।

विधु विनोद चोपड़ा ने पहले भी फिल्में बनाई हैं जैसे ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ और ‘3 इडियट्स’। उन्होंने बताया कि फिल्मों को संवाद, कहानी और संदर्भ की संभावना के आधार पर चुना जाता है। वे इसे अपनी फिल्मों में सफलता की राह में देखते हैं।

12Th Fail Review: कुछ अलग

पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंबल जिले से शुरू होने वाली यह कहानी इस बात का साक्षातक है कि हमारे देश में अभी भी लोग अपने सपनों को पूरा करने के लिए कठिनाईयों का सामना करते हैं। कहानी का मुख्य किरदार हमारे बीच हीरो की तरह है, जो अपने ईमानदार पिता की नौकरी जाने का सामना करता है, जबकि स्थानीय नेता उसके भाई की आजीविका छीन लेना चाहता है। लेकिन हमारा हीरो इस समस्या को बंदूक नहीं उठाता है, बल्कि वह पुलिस अफसर बनने का संकल्प लेता है। पूरी कहानी में दिल्ली में यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने वाले बच्चों के जीवन संघर्ष को दर्शाया गया है।

इस कहानी में एक दर्दनाक संघर्ष का भी पोत्र होता है, जब हमारे हीरो के दोस्त को एकदम समय पर मेडिकल इमरजेंसी होती है और उसे एक उच्च गुणवत्ता वाले अस्पताल में ले जाने के लिए धन नहीं होता है। लेकिन पुलिस अफसर के सहयोग से वह अस्पताल ले जाए जाता हैं।

12Th Fail

कहानी नेतृत्व करने वाले विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी कलाकारिता से पूरे माहौल का एक बहुत अच्छा पोत्र रचा है। आप इस कहानी के बारे में सोचते रहेंगे, क्योंकि इसमें एक विशेष कट बड़े और एक लव स्टोरी भी शामिल हैं।

इस कहानी का मूल संदेश हमें यही सिखाता है कि हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमेशा ईमानदारी बनाए रखनी चाहिए। हम आशा करते हैं कि आपको यह कहानी अवश्य पसंद आएगी और आप इससे कुछ न कुछ सीख पाएंगे।

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12Th Fail Review: मीडियम की बात

फिल्म चंबल की कहानी में मनोज कुमार शर्मा (विक्रांत मैसी) का किरदार है, जो यूपीएससी की तैयारी करता है। जब वह इस परीक्षा के दायरे में आता है, तब उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

फिल्म के निर्देशकों ने इस मुद्दे पर भी ध्यान दिया है कि उन लोगों के बारे में सोचने की जरूरत है, जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती है। इसलिए यह सोच अपनायी गयी है कि सिर्फ अंग्रेजी में शिक्षा लेने वाले ही इस परीक्षा को पास कर सकते हैं।

भारत में अमृत काल के दौर में भी हमारे देश के अनेक लोगों की यह समस्या है, जो कि अंग्रेजी नहीं जानते हैं। इस मुद्दे को उठाने के लिए फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी की कविता हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा की वाक्यांश का इस्तेमाल किया गया है।

फिल्म के निर्देशकों ने इसपर ध्यान दिया है कि यूपीएससी जैसी परीक्षाओं का एक बड़ा मुद्दा भी है, जो हिंदी मीडियम और इंग्लिश मीडियम के बीच का फर्क है। फिल्म में इस मुद्दे का भी पूरा ध्यान रखा गया है।

चंबल नाम की इस फिल्म की कहानी भव्य और उत्साहपूर्ण है। इसमें एक परीक्षा के टीके से लेकर उसके तैयारी तक का सफर दिखाया गया है। इससे हमें यह संदेश भी मिलता है कि कुछ भी संभव है, जब हम लगन से काम करते हैं।

12Th Fail Review: सीखने की बातें

फिल्मों का हम परिचय तो हर कोई देता है, लेकिन उनमें से कुछ ऐसी भी होती हैं जो सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करती, बल्कि हमें प्रेरणा भी देती हैं। उनमें से एक है 12वीं फेल। यह एक दिलचस्प कहानी है जिसे देखने के बाद हमें सोचने पर मजबूर करती है। फिल्म के दर्शक को समझाती है कि कैसे सफलता की यात्रा में किसी को असफल होना भी पड़ता है।

फिल्म में हम हीरो को देखते हैं जो यूपीएससी की तैयारी करता हुआ दिखाई देता है। उसके लिए रात – दिन काम करना आम बात नहीं है, लेकिन उसकी जिंदगी नहीं है एक ऐसी आसानी से गुजरने वाली। उसे सफल होने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।

फिल्म में हम देखते हैं कि अपनी टीम से सहयोग करने के आवश्यकता क्या होती है और हमारे सपनों में कठिनाओं से निपटने का लगातार जुझना क्या होता है। यंहा हमें दिखाया गया है कि सफल होने के लिए समझौते करना बहुत आवश्यक होता है।

यह फिल्म खासकर युवा दर्शकों के लिए बहुत उपयोगी होगी। युवा दर्शक पूरी दुनिया में जाने के लिए तैयार होते हैं, लेकिन अपने सपनों के लिए जुझते हुए खुद को थोड़ी परेशानी में देखते हैं। यह फिल्म उन्हें एक सक्षम व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करेगी और उनको सक्सेस एंड हैपीनेस में मदद कर सकेगी।

इसलिए, यह कहना सही होगा कि फिल्म 12वीं फेल हमें सिखाती है कि हम सफलता की यात्रा में जुटने से पहले हमें अपने विकल्पों को परखना चाहिए। सफलता पाने के लिए हमें न केवल जुझना पड़ता है, बल्कि अपनी विकल्पों पर भी ध्यान देना पड़ता है। इसलिए, अपने सपनों को पूरा करने के लिए हमें आगे बढ़ना ही होगा।

12Th Fail

12Th Fail Review: किरदार के हालात

मनोज कुमार शर्मा की भूमिका में विक्रांत मैसी कामयाब हैं। उन्होंने अपनी प्राप्तियों से इसे साबित कर दिया है। उनके किरदार में अलग-अलग शेड्स होते हैं। एक ओर वह एक ऐसी जगह से निकले हैं, जहां पढ़ाई के नाम पर नकल से परीक्षा पास कराई जाती है। दूसरी ओर वह दिल्ली में यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी के लिए लाइब्रेरी से लेकर आटा चक्की में काम करते हैं। विक्रांत एक कार्यकुशल और परिश्रमी शख्स हैं। वह 14 घंटे काम करते हैं, छह घंटे पढ़ाई करते हैं और चार घंटे नींद लेते हैं, इसके अलावा वह अपने गांव में मां और परिवार की चिंता भी करते हैं। उनकी जेब में पैसे नहीं होते हैं। लेकिन इन सबके बीच भी वह पढ़ाई और परीक्षाओं के लिए तैयारी करते हैं। विक्रांत अपनी भूमिका में उत्साहवंत और जुनूनी हैं। वह अपने किरदार को अच्छी तरह दर्शाने में सफल रहे हैं। उनकी प्रेमिका के रूप में मेधा शंकर, उनके दोस्त के रूप में अनंतविजय जोशी, कई बार यूपीएससी की परीक्षा पास करने की कोशिश कर चुके अंशुमान पुष्कर और उनकी प्रेरणा बनने वाले पुलिस अफसर प्रियांशु चटर्जी ने अपनी भूमिकाओं को सधे ढंग से निभाई हैं। विक्रांत जैसे अभिनेता काम करने के लिए किसी भी परेशानी का सामना करना होता है। वह अपने जुनून व प्रयासों से असफलता को चुनौती देते हुए अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए काम करते हैं। विक्रांत की भूमिका से सबको प्रेरणा मिलती है कि हमें किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपनी को ठीक से तैयार करना होता है।

12Th Fail Review: सबसे अलग

विधु विनोद चोपड़ा की नई फिल्म ‘चिचोरे’ ने बॉलीवुड में तहलका मचा दिया है। फिल्म की कहानी यूं तो सरल नजर आती है, लेकिन इसे सहजता से संभालना आसान नहीं था। विधु विनोद चोपड़ा करीब ढाई घंटे की फिल्म में बांधे रहते हैं। रोचक बात यह है कि फिल्म उनकी इससे पहले की फिल्मों से पूरी तरह से अलग है। यहां न अंडरवर्ल्ड है और ही झीलों में चलती नावों जैसी प्रेम कहानी। 12वीं फेल ठोस हकीकत की जमीन पर खड़ी है। ऐसे समय जबकि बॉलीवुड बड़े-भव्य सैट, वीएफएक्स, फंतासी और बाहुबली हीरो वाली कहानियां ढूंढ रहा है, विधु विनोद चोपड़ा चुपके से बता जाते हैं कि हमें कैसी फिल्मों की जरूरत है।

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